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—–त्रासदी—

social issue
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महाभारत ,पुराण ,दुनिया के खून खराबे के इतिहास के उलट संसार को अहिंसा का मन्त्र देने वाले गाँधी अब भारतीय मुद्रा का रक्षक हो गए  उनका अहिंसा का सिद्दांत अब बच्चो की किताबो के पन्ने काले करने और कुछ गुमनाम लेखको को पुरस्कार दिलाने का एक माध्यम भर रह गया , देश के हिन्दू भी कई मुसलमानों की बलि लेकर अपने धर्म को पक्का कर चुके  वही मुसलमान भी हिन्दू जो भी हत्थे आया को निपटा धर्म के अहंकार की तुष्टि कर लिए ! धर्म सदियों से जो भी करता आया था उसने वही किया इंसानों के खून से उसकी जड़ और पक्की हो गयी | आज भी शबनम अपने जले-फूके घर में अकेली अपनी दूध की बोतल ढूढ रही है अम्मी अब्बू तो मिले नहीं खाली बोतल जरुर मिल गयी पर कोई भरने वाला न मिला, गोविन्द भी आज अपनी देहलीज पर आखरी बार रोया था ,सुना है कुछ हरा कपडा पहने धर्म के ठेकेदार गली से गुज़र चुके थे कुछ चीखे हवा में जरुर तैरते हुए दूर निकल गयी थी गलत कौन था ,सही कौन पता नहीं ,जीत किसकी हुई पता नहीं चला पर चुनाव नजदीक है खेतो में लाशो का बीज है लहू से भी सिचाई हो चुकी है लगता है इस बार वोटो की फसल अच्छी होगी किसी शायर ने खूब कहा है –
शहर की आँखों ने मंज़र कुछ और देखा है अख़बार की सुर्खिया मगर कुछ और कहती है अहले-ए-शहर तो अमन चाहते थे
अमिर-ए-शहर की दिलचस्पी कुछ और कहती है तरक्की हर दिशा ये हुक्काम का दावा है गरीबो की बस्तिया मगर कुछ और कहती है |

(V.K AZAD)

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