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शहीद ए आज़म भगतसिंह का आखरी ख़त

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Bhagat_Singh_1929_140x190(28sep1907- never died)साथियों

स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझमे भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता | लेकिन मैं एक शर्त पर
जिन्दा रह सकता हू, कि मैं केद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता |

मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रांतिकारी दल के आदर्श और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊचां उठा दिया है -इतना ऊचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊचा मैं हरगिज़ नहीं हो सकता |
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं है | अगर मैं फासी से बच गया तो मेरी कमजोरियां ज़ाहिर हो जायेंगी और क्रांति का प्रतीक चिन्ह मन्दिम पड़ जायेगा या संभवतः मिटा दिया जाये | लेकिन दिलेराना ढंग से हँसते हँसते मेरे फासी चड़ने की सूरत मैं हिन्दुस्तानी माताए अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आज़ादी के लिए कुर्बानी देने वालो की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवादी या तमाम शेतानी शक्तियों के बूते कि बात नहीं रहेगी |
हा, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरत मेरे दिल में थी ,उसका हज़रवा भाग भी पूरा नहीं कर सका | अगर स्वतंत्र ,जिंदा रह सकता तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी सारी हसरते पूरी कर सकता |

इसके सिवाए मेरे मन में कभी कोई लालच फ़ासी से बचे रहने का नहीं आया | मुझसे अधिक सोभाग्यशाली कोन होगा आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है | अब तो बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है | कामना है कि यह और नजदीक हो जाये |

आपका साथी भगत सिंह                                                                                                                      २२मार्च १९३१

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