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अनोखा समाजवाद

social issue
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राममनोहर लोहिया के आदर्शों पर चलने वाली वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार जो खुद को समाजवाद का नया चेहरा बताती है उत्तरप्रदेश मे बेरोजगारों के उद्धार हेतू बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने जा रही है इस योजना के किर्यान्यावन के पीछे क्या वाकई में सरकार का वास्तविक उद्देश्य बेरोजगारों का भला करना है | क्योंकि आर्थिक रूप से बीमार राज्य के वित्कोष् मे ना तो इस भत्ते को उठाने का सामर्थ्य है और ना ही यह बेरोजगारों के भविष्य के हित मे है क्योंकि ऐसी योजनाओ कि समय सीमा वर्तमान सरकार के कार्यकाल पर निर्भर होती है सरकार बदलने कि स्थिति मे ऐसी योजनाये दूसरी सरकार द्वारा प्राय बंद कर दी जाती है ऐसी दशा मे बेरोजगारों के हाथ मे आया झुनझुना भी उनसे छीन लिया जाता है अगर सरकार वाकई मे बेरोजगारों के लिए चिंतित है तो वो क्यों नहीं राज्य मे लम्बित पड़े शिक्षकों की बहाली करती है या बेरोजगारों की चिंता चुनाव से पहल्रे ठन्डे पड़े राजनीतिक चूल्हे पर चुनावी रोटिया सेकने के लिए एक आडम्बर मात्र था | सरकार बनाने के इतने समय बाद भी सरकार ने उन अशिक्षित बेरोजगारों के लिए क्यों नहीं कुछ किया जो कभी प्रदेश की जान कहे जाने वाले पीतल व जरी उद्योग पर निर्भेर थे परन्तु प्रदेश की जरजर विधुत व्यवस्था ने उन्हें अपने उद्योग धंदे बंद करने पर मजबूर कर दिया क्या उनका प्रदेश से कोई सरोकार नहीं है क्या इस योजना पर व्यय होने वाले धन से उनको विशेष कोटे से बिजली देकर या आर्थिक सहायता देकर प्रदेश को विश्व’ मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले पीतल व जरी उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था जिससे ना जाने कितने बेरोजगारों को रोजगार भी प्राप्त होता और अगर बेरोजगारों को भत्ता ही देना बेरोजगारी की समस्या का हल है तो क्यों ना देश के तकनीकी व शेक्षिक संस्थानों को बंद करके पूरे देश मे ही इसे लागू कर दिया जाये | बेरोजगारों को इस प्रकार से अकर्मण्यता की स्थिति मे लाकर उनको धन बाटना क्या उनकी शम्तायो व सामर्थ्य का मखोल उड़ाना नहीं है क्या ये देश की रीड कहे जाने नोजवानों पर गलत प्रभाव नहीं डालेगा |

(v.k.azad)

अनोखा समाजवाद
राममनोहर लोहिया के आदर्शों  पर चलने वाली वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार जो खुद को समाजवाद का नया चेहरा बताती है
उत्तरप्रदेश मे बेरोजगारों के उद्धार हेतू बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने जा रही है इस योजना के किर्यान्यावन के पीछे
क्या वाकई में सरकार का वास्तविक उद्देश्य बेरोजगारों का भला करना है | क्योंकि आर्थिक रूप से बीमार राज्य के वित्कोष्
मे ना तो इस भत्ते को उठाने का सामर्थ्य है और ना ही यह बेरोजगारों के भविष्य के हित मे है क्योंकि ऐसी योजनाओ कि
समय सीमा वर्तमान सरकार के कार्यकाल पर निर्भर होती है सरकार बदलने कि स्थिति मे ऐसी योजनाये दूसरी सरकार द्वारा
प्राय बंद कर दी जाती है ऐसी दशा मे बेरोजगारों के हाथ मे आया झुनझुना भी उनसे छीन लिया जाता है अगर सरकार वाकई
मे बेरोजगारों के लिए चिंतित है तो वो क्यों नहीं राज्य मे लम्बित पड़े शिक्षकों की बहाली करती है या बेरोजगारों की चिंता चुनाव
से पहल्रे ठन्डे पड़े राजनीतिक चूल्हे पर चुनावी रोटिया सेकने के लिए एक आडम्बर मात्र था \ सरकार बनाने के इतने समय बाद
भी सरकार ने उन अशिक्षित बेरोजगारों के लिए क्यों नहीं कुछ किया जो कभी प्रदेश की जान कहे जाने वाले पीतल व जरी उद्योग
पर निर्भेर थे परन्तु प्रदेश की जरजर विधुत व्यवस्था ने उन्हें अपने उद्योग धंदे बंद करने पर मजबूर कर दिया क्या उनका प्रदेश
से कोई सरोकार नहीं है क्या इस  योजना पर व्यय होने वाले धन से उनको विशेष कोटे से बिजली देकर या आर्थिक सहायता देकर
प्रदेश को विश्व’ मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले पीतल व जरी उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था जिससे ना जाने
कितने बेरोजगारों को रोजगार भी प्राप्त होता और अगर बेरोजगारों को भत्ता ही देना बेरोजगारी की समस्या का हल है तो क्यों
ना देश के तकनीकी व शेक्षिक  संस्थानों को बंद करके पूरे देश मे ही इसे लागू कर दिया जाये \  बेरोजगारों को इस प्रकार से अकर्मण्यता
की स्थिति मे लाकर उनको धन बाटना क्या उनकी शम्तायो व सामर्थ्य का मखोल उड़ाना नहीं है क्या ये देश की रीड कहे जाने
नोजवानों पर गलत प्रभाव नहीं डालेगा
अनोखा समाजवाद
राममनोहर लोहिया के आदर्शों  पर चलने वाली वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार जो खुद को समाजवाद का नया चेहरा बताती है
उत्तरप्रदेश मे बेरोजगारों के उद्धार हेतू बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने जा रही है इस योजना के किर्यान्यावन के पीछे
क्या वाकई में सरकार का वास्तविक उद्देश्य बेरोजगारों का भला करना है | क्योंकि आर्थिक रूप से बीमार राज्य के वित्कोष्
मे ना तो इस भत्ते को उठाने का सामर्थ्य है और ना ही यह बेरोजगारों के भविष्य के हित मे है क्योंकि ऐसी योजनाओ कि
समय सीमा वर्तमान सरकार के कार्यकाल पर निर्भर होती है सरकार बदलने कि स्थिति मे ऐसी योजनाये दूसरी सरकार द्वारा
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य बंद कर दी जाती है ऐसी दशा मे बेरोजगारों के हाथ मे आया झुनझुना भी उनसे छीन लिया जाता है अगर सरकार वाकई
मे बेरोजगारों के लिए चिंतित है तो वो क्यों नहीं राज्य मे लम्बित पड़े शिक्षकों की बहाली करती है या बेरोजगारों की चिंता चुनाव
से पहल्रे ठन्डे पड़े राजनीतिक चूल्हे पर चुनावी रोटिया सेकने के लिए एक आडम्बर मात्र था \ सरकार बनाने के इतने समय बाद
भी सरकार ने उन अशिक्षित बेरोजगारों के लिए क्यों नहीं कुछ किया जो कभी प्रदेश की जान कहे जाने वाले पीतल व जरी उद्योग
पर निर्भेर थे परन्तु प्रदेश की जरजर विधुत व्यवस्था ने उन्हें अपने उद्योग धंदे बंद करने पर मजबूर कर दिया क्या उनका प्रदेश
से कोई सरोकार नहीं है क्या इस  योजना पर व्यय होने वाले धन से उनको विशेष कोटे से बिजली देकर या आर्थिक सहायता देकर
प्रदेश को विश्व’ मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले पीतल व जरी उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था जिससे ना जाने
कितने बेरोजगारों को रोजगार भी प्राप्त होता और अगर बेरोजगारों को भत्ता ही देना बेरोजगारी की समस्या का हल है तो क्यों
ना देश के तकनीकी व शेक्षिक  संस्थानों को बंद करके पूरे देश मे ही इसे लागू कर दिया जाये \  बेरोजगारों को इस प्रकार से अकर्मण्यता
की स्थिति मे लाकर उनको धन बाटना क्या उनकी शम्तायो व सामर्थ्य का मखोल उड़ाना नहीं है क्या ये देश की रीड कहे जाने
नोजवानों पर गलत प्रभाव नहीं डालेगा
अनोखाDDF समाजवाद
राममनोहर लोहिया के आदर्शों  पर चलने वाली वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार जो खुद को समाजवाद का नया चेहरा बताती है
उत्तरप्रदेश मे बेरोजगारों के उद्धार हेतू बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने जा रही है इस योजना के किर्यान्यावन के पीछे
क्या वाकई में सरकार का वास्तविक उद्देश्य बेरोजगारों का भला करना है | क्योंकि आर्थिक रूप से बीमार राज्य के वित्कोष्
मे ना तो इस भत्ते को उठाने का सामर्थ्य है और ना ही यह बेरोजगारों के भविष्य के हित मे है क्योंकि ऐसी योजनाओ कि
समय सीमा वर्तमान सरकार के कार्यकाल पर निर्भर होती है सरकार बदलने कि स्थिति मे ऐसी योजनाये दूसरी सरकार द्वारा
प्रायDFDD बंद कर दी जाती है ऐसी दशा मे बेरोजगारों के हाथ मे आया झुनझुना भी उनसे छीन लिया जाता है अगर सरकार वाकई
मे बेरोजगारों के लिए चिंतित है तो वो क्यों नहीं राज्य मे लम्बित पड़े शिक्षकों की बहाली करती है या बेरोजगारों की चिंता चुनाव
से पहल्रे ठन्डे पड़े राजनीतिक चूल्हे पर चुनावी रोटिया सेकने के लिए एक आडम्बर मात्र था \ सरकार बनाने के इतने समय बाद
भी सरकार ने उन अशिक्षित बेरोजगारों के लिए क्यों नहीं कुछ किया जो कभी प्रदेश की जान कहे जाने वाले पीतल व जरी उद्योग
पर निर्भेर थे परन्तु प्रदेश की जरजर विधुत व्यवस्था ने उन्हें अपने उद्योग धंदे बंद करने पर मजबूर कर दिया क्या उनका प्रदेश
से कोई सरोकार नहीं है क्या इस  योजना पर व्यय होने वाले धन से उनको विशेष कोटे से बिजली देकर या आर्थिक सहायता देकर
प्रदेश को विश्व’ मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले पीतल व जरी उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था जिससे ना जाने
कितने बेरोजगारों को रोजगार भी प्राप्त होता और अगर बेरोजगारों को भत्ता ही देना बेरोजगारी की समस्या का हल है तो क्यों
ना देश के तकनीकी व शेक्षिक  संस्थानों को बंद करके पूरे देश मे ही इसे लागू कर दिया जाये \  बेरोजगारों को इस प्रकार से अकर्मण्यता
की स्थिति मे लाकर उनको धन बाटना क्या उनकी शम्तायो व सामर्थ्य का मखोल उड़ाना नहीं है क्या ये देश की रीड कहे जाने
नोजवानों पर गलत प्रभाव नहीं
अनोखा समाजवाद
राममनोहर लोहिया के आदर्शों  पर चलने वाली वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार जो खुद को समाजवाद का नया चेहरा बताती है
उत्तरप्रदेश मे बेरोजगारों के उद्धार हेतू बेरोजगारी भत्ता योजना शुरू करने जा रही है इस योजना के किर्यान्यावन के पीछे
क्या वाकई में सरकार का वास्तविक उद्देश्य बेरोजगारों का भला करना है | क्योंकि आर्थिक रूप से बीमार राज्य के वित्कोष्
मे ना तो इस भत्ते को उठाने का सामर्थ्य है और ना ही यह बेरोजगारों के भविष्य के हित मे है क्योंकि ऐसी योजनाओ कि
समय सीमा वर्तमान सरकार के कार्यकाल पर निर्भर होती है सरकार बदलने कि स्थिति मे ऐसी योजनाये दूसरी सरकार द्वारा
प्राय बंद कर दी जाती है ऐसी दशा मे बेरोजगारों के हाथ मे आया झुनझुना भी उनसे छीन लिया जाता है अगर सरकार वाकई
मे बेरोजगारों के लिए चिंतित है तो वो क्यों नहीं राज्य मे लम्बित पड़े शिक्षकों की बहाली करती है या बेरोजगारों की चिंता चुनाव
से पहल्रे ठन्डे पड़े राजनीतिक चूल्हे पर चुनावी रोटिया सेकने के लिए एक आडम्बर मात्र था \ सरकार बनाने के इतने समय बाद
भी सरकार ने उन अशिक्षित बेरोजगारों के लिए क्यों नहीं कुछ किया जो कभी प्रदेश की जान कहे जाने वाले पीतल व जरी उद्योग
पर निर्भेर थे परन्तु प्रदेश की जरजर विधुत व्यवस्था ने उन्हें अपने उद्योग धंदे बंद करने पर मजबूर कर दिया क्या उनका प्रदेश
से कोई सरोकार नहीं है क्या इस  योजना पर व्यय होने वाले धन से उनको विशेष कोटे से बिजली देकर या आर्थिक सहायता देकर
प्रदेश को विश्व’ मानचित्र पर पहचान दिलाने वाले पीतल व जरी उद्योगों को पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता था जिससे ना जाने
कितने बेरोजगारों को रोजगार भी प्राप्त होता और अगर बेरोजगारों को भत्ता ही देना बेरोजगारी की समस्या का हल है तो क्यों
ना देश के तकनीकी व शेक्षिक  संस्थानों को बंद करके पूरे देश मे ही इसे लागू कर दिया जाये \  बेरोजगारों को इस प्रकार से अकर्मण्यता
की स्थिति मे लाकर उनको धन बाटना क्या उनकी शम्तायो व सामर्थ्य का मखोल उड़ाना नहीं है क्या ये देश की रीड कहे जाने
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